भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखिये जिसको भी अब वो यहाँ ख़ुशदिल है कहाँ / दरवेश भारती
Kavita Kosh से
देखिये जिसको भी अब वो यहाँ ख़ुशदिल है कहाँ
और इस बात से इन्सां कोई ग़ाफ़िल है कहाँ
साथ बीनाई के दानाई भी हो जिसके पास
ढूँढ लेता है वो तूफ़ान में साहिल है कहाँ
ज़िन्दगी जीने का जिसने भी हुनर सीख लिया
मस्अला कोई भी उसके लिए मुश्किल है कहाँ
रूबरू थी वो मेरे दिल में भी मौजूद थी वो
और मैं ढूँढता-फिरता था कि मंज़िल है कहाँ
इल्म और फ़न से सँवरती हुई दुनिया में कोई
कितना जाहिल हो मगर इतना भी जाहिल है कहाँ
जिसके बाइस हैं अवाम आज फ़क़त ज़िन्दा लाश
है सवाल उसकी ज़बां पर यही, क़ातिल है कहाँ
यह किया है वह किया मुल्क की ख़ातिर 'दरवेश'
कहनेवालों से ये पूछो ज़रा, हासिल है कहाँ