देखिये जिसको भी अब वो यहाँ ख़ुशदिल है कहाँ / दरवेश भारती

देखिये जिसको भी अब वो यहाँ ख़ुशदिल है कहाँ
और इस बात से इन्सां कोई ग़ाफ़िल है कहाँ

साथ बीनाई के दानाई भी हो जिसके पास
ढूँढ लेता है वो तूफ़ान में साहिल है कहाँ

ज़िन्दगी जीने का जिसने भी हुनर सीख लिया
मस्अला कोई भी उसके लिए मुश्किल है कहाँ

रूबरू थी वो मेरे दिल में भी मौजूद थी वो
और मैं ढूँढता-फिरता था कि मंज़िल है कहाँ

इल्म और फ़न से सँवरती हुई दुनिया में कोई
कितना जाहिल हो मगर इतना भी जाहिल है कहाँ

जिसके बाइस हैं अवाम आज फ़क़त ज़िन्दा लाश
है सवाल उसकी ज़बां पर यही, क़ातिल है कहाँ

यह किया है वह किया मुल्क की ख़ातिर 'दरवेश'
कहनेवालों से ये पूछो ज़रा, हासिल है कहाँ

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