देखी केॅ समय-चाल कालो मुँह ढाटपै छै / अमरेन्द्र
लूटै-खसौटै मेँ जे टा छै-छै निपुण
करसी रँ सबके अकड़लोॅ छै शील-गुण
धरती तेॅ लोगोॅ के विक्खोॅ सेँ पटी गेलै
जहिया सेँ हिरदय में अमरित ठो घटी गेलै
वामन रोॅ बदला मेँ राकस्हैं जग नाँपै छै।
हू-हू बतास बहै जेठोॅ-बैशाखोॅ के
पाण्डव के घोॅर जरी रहलोॅ छै लाखोॅ के
काहूँ नै छाँव कहीं चन्दन आ पीपल रोॅ
जरी गेलै लोॅत-पात सौंसे ठो जंगल रॉे
प्यासलोॅ-तपासलोॅ सब रौदी सेँ हाँफै छै।
पछियाँ बहियाबै छै पुरबा के रागोॅ केू
पानियो मेँ चैन नै छै मीनोॅ के भागोॅ केॅ
टकरावै उलका छै, पुच्छल सेँ शनियो छै
कन्हौं सेँ मंगल दिखाबै की कटियो छै
चान-सुरूज, बुद्ध-गुरु पर्वत पर काँपै छै।
इखनी तेॅ देवोॅ केॅ देव्हैं सें वैर छै
एना में केना सिरिष्टी रोॅ खैर छै
काहूँ नै कृष्ण, व्यास कण्व, जनक, बाल्मीकि
शापित होय शाप दै आपन्हैं में ऋषि-ऋषि
विष्णु केॅ भृगु ही गोड़ोॅ सें चाँपै छै।