भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखी दुनियां के चलन आज शरम लागै छै / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखी दुनियां के चलन आज शरम लागै छै
है कटुता के माहौल बड़ा गरम लागै छै

एक मीनार के चर्चा तेॅ कहीं छै लेकिन
ईहो हमरा मतर कि एक भरम लागै छै

काहीं बिखरै छै जदि दूध रङ चाँदनी
ई नवाबी कोय आधुनिक हरम लागै छै

रक्तपिपासु गर्म मिजाज छेलै जे पहिनें
ताज मिलथैं सुभाव होकरोॅ परम लागै छै

भूख, भ्रष्टाचार, अशिक्षा छेकै यहां केरोॅ मसला
आयकोॅ देवता के यहू भी करम लागै छै

जे गुनाह में पकड़ावै छै सब कहथौं निर्दोषे छै
लाज कहाँ, आरोपी बड़ा बेशरम लागै छै

याद फर्ज के कहाँ छै, खाली मांग करै छै हक के
‘बाबा’ लूट खसोट ही सबरोॅ धरम लागै छै।