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देखूँ जिधर भी दिखता ठिकाना उसी का है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
देखूँ जिधर भी दिखता ठिकाना उसी का है
कहते हैं जिसे लोग फ़साना उसी का है
उसका ही आसमान सरज़मीन उसी की
गाती फ़िज़ा है जिस को तराना उसी का है
जिस ओर भी जाऊँ मुझे मिल जाये राह में
नज़रें अगर उठें तो बहाना उसी का है
कोई नहीं करीब दिल के उस के अलावा
ये बेपनाह इश्क़ निभाना उसी का है
सुनता नहीं है बात कोई आज किसी की
खबरों में भी वही है ज़माना उसी का है
चौखट पे उसी के सुनी फ़रियाद है जाती
सब की मुराद हश्र दिलाना उसी का है
महफ़िल में कह रहा है वही सुन रहा वही
आना उसी का बज़्म में जाना उसी का है