भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखूँ फिर क्या होता है? / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोती जैसी एक बूँद को
रख लूँ अपनी मुट्ठी में
देखूँ फिर क्या होता है?

इस मोती में सबसे पहले
देखूँ अपना चेहरा,
फिर धीरे से इसे हवा के
कंधों पर दूँ लहरा,
अगर कहो तो हँसते-हँसते
अभी मसल दूँ चुटकी में
देखूँ फिर क्या होता है?

केले के पत्ते पर बैठा
दूँ, जेसे महारानी,
या गुलाब पर इसे
सजा दूँ बिंदी बना सुहानी,
या ले जाऊँ इसे छुपाकर
अपने घर तक छुट्टी में
देखूँ फिर क्या होता है?