देखूँ फिर क्या होता है? / रमेश तैलंग

मोती जैसी एक बूँद को
रख लूँ अपनी मुट्ठी में
देखूँ फिर क्या होता है?

इस मोती में सबसे पहले
देखूँ अपना चेहरा,
फिर धीरे से इसे हवा के
कंधों पर दूँ लहरा,
अगर कहो तो हँसते-हँसते
अभी मसल दूँ चुटकी में
देखूँ फिर क्या होता है?

केले के पत्ते पर बैठा
दूँ, जेसे महारानी,
या गुलाब पर इसे
सजा दूँ बिंदी बना सुहानी,
या ले जाऊँ इसे छुपाकर
अपने घर तक छुट्टी में
देखूँ फिर क्या होता है?

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.