भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे / ज़फ़र गोरखपुरी
Kavita Kosh से
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे
अब भीक मांगने के तरीक़े बदल गए
लाज़िम नहीं कि हाथ में कासा<ref>भीख माँगने का कटोरा </ref> दिखाई दे
नेज़े<ref>भाला</ref> पे रखके और मेरा सर बुलंद कर
दुनिया को इक चिराग़ तो जलता दिखाई दे
दिल में तेरे ख़याल की बनती है एक धनक<ref>इंद्र-धनुष</ref>
सूरज-सा आइने से गुज़रता दिखाई दे
चल ज़िंदगी की जोत जगाएं, अजब नहीं
लाशों के दरमियां कोई रस्ता दिखाई दे
हर शै मेरे बदन की ज़फ़र क़त्ल हो चुकी
एक दर्द की किरन है कि ज़िंदा दिखाई दे
शब्दार्थ
<references/>