भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखो खेते किसनवा जाय रहे / बुन्देली
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
देखो खेते किसनवा जाय रहें,
वे तो मस्ती में हैं कछु गाय रहें,
गर्मी की तपती दोपहरिया,
उनखों तनकऊ नाहिं खबरिया,
सिर पे धरके चले गठरिया,
वे तो तन मन की सुध बुध भुलाय रहे।
मेहनत खेतन में वे करते,
मेहनत से तनकऊ नहिं डरते, माटी में अन्न उगाते,
देखो खेतन में हल खो चलाय रहे।
कभऊं-कभऊं ओला पड़ जाते,
बादल पानी उन्हें डराते,
पर वे तनकऊ न घबराते,
देखो भगवान खों वे तो मनाय रहे।
गाय बैल की करें रखवारी,
बाद में करते हैं वे ब्यारी, गांवन की शोभा है न्यारी,
धरती खों स्वर्ग बनाय रहे।
कोऊ न बैठे घर में खाली,
लड़का बिटिया और घरवाली,
जीवन की है नीति निराली
अरे सब खों वे सीख सिखाय रहे।