देखो माई हरियारो सावन आयो।
हर्यो टिपारो शीश विराजत काछ हरी मन भायो॥१॥
हरी मुरली हे हरि संग राधे, हरी भूमि सुखदाई।
हरी हरी वन राजत द्रुमवेली नृत्यत कुंवर कन्हाई॥२॥
हरी हरी सारी, सखीजन पहेरें, चोली हरी रंग भीनी।
रसिक प्रीतम मन हरित भयो हे, सर्वस्व नौछावर कीनो॥३॥