भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखो राम लखन खेले होरी / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखो राम लखन खेले होरी। केशर के रंग घोरी।
फिरत सखिन संग डफ बजावत
अबिर लिए हैं भर झोरी। देखो।
पिचकारिन की धूम मची है कइसे सारी बचो री।
द्विज महेन्द्र बरबस रंग डारी
अब तो लाज गयो री।