भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखो सखी वर्षा ऋतु आई / बुन्देली
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
देखो सखी वर्षा ऋतु आई
बागन मोर मोकिला बोलत,
चातक दादुर शोर मचाई। देखो...
घुमड़-घुमड़ गरजत घन तड़कत,
काली घटा नभ देत दिखाई। देखो...
रिमझिम-रिमझिम बरसत बदरा,
हरी-हरी दूब लता झुक आई। देखो...
सरजू तीर प्रमोद कुंज में,
हिलमिल झूले सिया रघुराई। देखो...
देखो सखि वर्षा ऋतु आई।
उमड़-घुमड़ कर बादल आये
बिजली चमक रही अति न्यारी।
देखो सखि वर्षा ऋतु आई।
काली-काली कोयल कूकत
मीठी बोल लगत है प्यारी
झूला डरो कदंब की डारी
फूलन की शोभा है न्यारी।
चारों ओर बिछी हरियाली
गांवन की शोभा है न्यारी।