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देख कर उस हसीन पैकर को / फ़ारिग बुख़ारी
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देख कर उस हसीन पैकर को
नश्शा सा आ गया समुंदर को
डोलती डगमगाती सी नाव
पी गई आ के सारे सागर को
ख़ुश्क पेड़ों में जान पड़ने लगी
देख कर रूप के समुंदर को
बहर प्यासे की जुस्तुजू में है
है सदफ़ की तलाश गौहर को
कोई तो नीम-वा दरीचों से
देखे इस रत-जगे के मंज़र को
एक देवी है मुन्तज़िर ‘फ़ारिग़’
वा किए पट सजाए मंदर को