भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देख कर फूल सहम जाता है / नीरज गोस्वामी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कब अंधेरों से खौफ खाता है
वो जो तन्हाइयों में गाता है

ग़म तो अक्सर ये देखा है मैंने
उसका बढ़ता है जो दबाता है

काँटे आए हो जिसके हिस्से में
देख कर फूल सहम जाता है

कहना मुश्किल है प्यार में यारों
कौन देता है कौन पाता है

काश बरसात बन बिखर जाए
जो घटाओं सा मुझ पे छाता है

आप इसको मेरी कमी कह लें
मुझको हर कोई दिल से भाता है

हर बशर को उठा के हाथों में
वक़्त कठपुतली- सा नचाता है

नींद बस में मेरे नहीं 'नीरज`
जो चुराता है वो ही लाता है