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देख बींद काणै-सो जीवन / सांवर दइया
Kavita Kosh से
देख बींद काणै-सो जीवन
हंसै नगद नाणै-सो जीवन
आं तिरळवीं घाट्यां री सैल
है सांस गमाणै-सो जीवन
ना हब देणो बळै ना बुझै
है धुखतो छाणै-सो जीवन
रूपाळा जाळ बिछा’र अठै
चुगै लोग दाणै-सो जीवण
अस्सी घाव थकां औ जूझै
हुयो आज राणै-सो जीवण