देख मस्ती वजूद की मेरी / इरफ़ान सत्तार
देख मस्ती वजूद की मेरी
ता अबद धूम मच गई मेरी
तू तवज्जोह इधर करे न करे
कम न होगी सुपुर्दगी मेरी
दिल मेरा कब का हो चुका पत्थर
मौत तो कब की हो चुकी मेरी
अब तो बर्बाद कर चुके ये कहो
क्या इसी में थी बेहतरी मेरी
मेरे ख़ुश-रंग ज़ख़्म देखते हो
यानी पढ़ते हो शाएरी मेरी
अब तेरी गुफ़्तुगू से मुझ पे खुला
क्यूँ तबीअत उदास थी मेरी
दिल में अब कोई आरज़ू ही नहीं
यानी तकमील हो गई मेरी
ज़िंदगी का मआल इतना है
ज़िंदगी से नहीं बनी मेरी
चाँद हसरत-ज़दा सा लगता है
क्या वहाँ तक है रौशनी मेरी
धूप उस की है मेरे आँगन में
उस की छत पर है चाँदनी मेरी
इक महक रोज़ आ के कहती है
मुंतज़िर है कोई गली मेरी
जाने कब दिल से आँख तक आ कर
बह गई चीज़ क़ीमती मेरी
अब मैं हर बात भूल जाता हूँ
ऐसी आदत न थी के थी मेरी
रात भर दिल में ग़ुल मचाती है
आरज़ू कोई सर-फिरी मेरी
मेरी आँखों में आ के बैठ गया
शाम-ए-फ़ुर्क़त उजाड़ दी मेरी
पहले सीने में दिल धड़कता था
अब धड़कती है बे-दिली मेरी
क्या अजब वक़्त है बिछड़ने का
देख रुकती नहीं हँसी मेरी
ख़ुद को मेरे सुपुर्द कर बैठा
बात तक भी नहीं सुनी मेरी
तेरे इंकार ने कमाल किया
जान में जान आ गई मेरी
ख़ूब बातें बना रहा था मगर
बात अब तक नहीं बनी मेरी
मैं तो पल भर जिया नहीं 'इरफ़ान'
उम्र किस ने गुज़ार दी मेरी