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देख रहा हूँ / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
मैंने पूछा!
तुमने जलते हुए रोम को देखा है?
उसने कहा नहीं
मगर आज देख रहा हूँ
और जो देख रहा हूँ
निश्चित ही इससे ज़्यादा बुरी स्थिति में नहीं रहा होगा
जितनी बुरी स्थिति में आज मेरा देश है.
लोगों के दिमाग निकाल कर
किनारे रख दिये गए हैं
किस्से-कहानियों और मिथकों के बल पर
उनके देखने. सोचने और समझने की शक्ति
बड़ी सफाई से छीन ली गई है.
झूठ और अफवाहों के बल पर
एक ही लाठी से
गधे-घोड़े. गाय-भैस और इंसान को हांका जा रहा है
कभी यह एक विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश था
अब इस वाक्य को
ब्रम्हांड के इतिहास में दर्ज होने से कोई नहीं रोक सकता.