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देख लो ये है सियासत / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
देख लो ये है सियासत कार गुज़ारी आजकल।
है सदन में कुर्सियों से मारामारी आजकल।
धन बरसता है कुबेरों के घरों में हर समय,
और गरीबों की है क़िस्मत, सूखी क्यारी आजकल।
आन्दोलन करनेवाले हैं उपेक्षा के शिकार,
और लफंगों गुंडों की है रंगदारी आजकल।
खिंच रहे हैं अच्छे लोगों की ही टांगें लोग सब,
और बुरे लोगों की बनती ख़ूब यारी आजकल।
हो गए सुख चैन सब हैं, घर के रिश्तों में हराम,
अपनी चलती है न कोई होशियारी आजकल।
अब ज़रूरत है हमारे देश को इंसान की,
वरना लुट जाएगी इज़्ज़त बारी-बारी आजकल।
रह गये ‘प्रभात’ केवल सब दिखाने के लिए,
हो गए हैं धर्म, जाति, रिश्तेदारी आजकल।