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देख सखी रे फागुन के मस्ती / मुकेश कुमार यादव

झूमै, नाचै बस्ती-बस्ती।
रंग बिरंग के फूल खिलै, खिलै वसंती हरियाली।
अमलताश, कचनार, गुलाब के चेहरा पर छै लाली।
अलसी-सरसौ हँसती।
तन-मन पर दस्तक दै, पागल ई फगुनाहट।
पिया बसै परदेश में, के दै छै दिल पर आहट?
सजना के संग मस्ती।
टुक-टुक जेना चांद-चकोर, रातभर निहारै।
साजन खातिर भर दिन, घर-ऐंगना बुहारै।
प्रीत के रंग बसंती।
अंखियन-लोर-सलोर, बूंद-बूंद बस टपकै।
फगुनाहट के आहट में, मन बसंती चहकै।
रंग गुलाल के मस्ती।
ऐलै होली रंग-गुलाल, पिचकारी रो संग।
बच्चा-बूढ़ो-जवान, सब के अलगे उमंग।
ढोल-झाल-मृदंग के मस्ती।