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देना-पावना / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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मैंने क्या लिखा
क्यों लिखा
किसके लिए
क्या इस धूसर
आकाश के लिए
कभी बादलों से भरा
आँगन में तारों को सजाये
जटाओं में चाँद को अटकाये
क्या इस धरा के लिए
ऋतुओं से भरपूर जो
सभी के लिए
संभावना से भरी
इस सौरमंडल में
जीवन की प्रतीक
अनेकों ग्रहों व सौर-पथ से बँधी
क्या वृक्षों के लिए
परिवर्तन जिनके लिए जीवन
कभी नग्न, कभी सघन
क्या सागर के लिए
समेटे है जो अनेकों रहस्य
करता धरा को संतुलित
जानते हैं ये सभी देना
या शायद
लिखा उस मनुष्य के लिए
जानता है जो सिर्फ लेना।