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देना / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
जैसे पेड़ देते हैं फल
नदियाँ देती हैं जल
फूल देते हैं सुगंध
वैसे ही मैं देती हूँ
ख़ुद को
तुम्हें
इसलिए नहीं
कि मैं तुम से प्रेम करती हूँ
इसलिए भी नहीं
कि तुम मुझे चाहते हो
बल्कि इसलिए
कि तुम भी यह जान सको
कि बिना किसी चाहना के
देना ही
असल में देना है।