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देवकी चलली नहाय की मन पछताइक रे ललना / मैथिली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

देवकी चलली नहाय की मन पछताइक रे
ललना रे मरब जहर विष खाई घर नहिं घुरब रे।
जनी तोहे देवकी डेराय मन पछ्ताइक रे
ललना रे जनम लेत यदुकुल बालक वंशक कुन्दन रे।
पहिल सपन देवकी देखल पहिल पहर राती रे
ललना रे छोटे छोटे अमुआ गाछ फ़ल फ़ूल लुबधल रे।
दोसर पहर राती बीतल दोसर सपन देखु रे
ललना रे सुन्दर बांस के बीट देहरी बीच रोपल रे ।
तेसर सपन देखल तेसर पहर राती रे
ललना रे सुन्दर दहि के छाछ सिरमा बीच राखल रे।
चारीम पहर राती बीतल चारीम सपन देखल रे
ललना रे सुन्दर कमलक फ़ुल खोईंछा भर राखल रे।
जे इहो सोहर गावोल गावी सुनावोल रे
ललना रे तीनकई वास बैकुण्ठ पूत्र फ़ल पाओल रे।


यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से