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देवताओं और पशुओं के बीच / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
जब पहिए पर चलती
बस का नाम सुना था
तब वे जवान थीं
सामने का ढाँक काट
जब सड़क बनने लगी
अब तक बुढापे ने घेर लिया
कितनी ही बूढियाँ
पीढ़ियाँ चल बसीं
बस के इंतज़ार में
घर के किसी कोने
खिंद में दुबकी देखती रहीं दिल्ली
घूमती रहीं आँगन में शिमला
अपने देवताओं औ पशुओं के बीच
नापती रहीं गोल पृथ्वी
देवता के कोप और
पशु की मृत्यु पर
समान रूप से रोती रहीं
दिसंबर 1990