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देवताओं और राक्षसों का देश / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
ये देवताओं और राक्षसों का देश है
यहाँ गान्धारी न्याय करती है
न्याय का देवता किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होता
तीन तरह के अम्लों का गठबंधन राज करता है
चुनाव तीन तीलियों वाला स्टेरिंग है
जिसे राज्याभिषेक करने वाले पुजारी ने
कार से अलग कर जनता के हाथों में थमा दिया है
साहित्यिक कुँए का मेढक
सारी दुनिया घूमकर वापस कुँए में आ जाता है
शब्द एक दूसरे से जुड़कर तलवार बनाते हैं
विलोम शब्दों का कत्ल करने के लिए
आइने के सामने आइना रखते ही
वो घबराकर झूठ बोलने लगता है
धरती का मुँह देख देखकर
सूरज अपनी आग काबू में रखता है
ये देवताओं और राक्षसों का देश है
यहाँ इंसानों का जीना मना है