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देवता कैसे भजें / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
रंगमहलों में हुए उत्सव
हम फटे पर्दे
भला कैसे सजें
रेशमी पोशाक पहने
खिड़कियों को
ताकते फानूस
इत्र में डूबी हवाएँ
कहकहों के
दूर तक लंबे जुलूस
खण्डहर में मौन को सुनते
काठ की हम घंटियाँ
कैसे बजें
साँवली मेहराब के नीचे
चाँद के
टुकड़े कई लटके
रात भर मीनार के ऊपर
पाँव नंगी देह के भटके
उधर मंदिर में बुझे दीपक
हम पुराने देवता
कैसे भजें