भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देवता कैसे भजें / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रंगमहलों में हुए उत्सव
हम फटे पर्दे
          भला कैसे सजें
 
रेशमी पोशाक पहने
खिड़कियों को
ताकते फानूस
इत्र में डूबी हवाएँ
कहकहों के
दूर तक लंबे जुलूस
 
खण्डहर में मौन को सुनते
काठ की हम घंटियाँ
             कैसे बजें
 
साँवली मेहराब के नीचे
चाँद के
टुकड़े कई लटके
रात भर मीनार के ऊपर
पाँव नंगी देह के भटके
 
उधर मंदिर में बुझे दीपक
हम पुराने देवता
               कैसे भजें