भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देवता तो हूँ नहीं / रमानाथ अवस्थी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देवता तो हूँ नहीं स्वीकार करता हूँ
आदमी हूँ, क्योंकि मैं तो प्यार करता हूँ

मृत्यु तो मेरे लिए है जन्म की पहचान
औ’ चिता की राख मेरे रूप की मुस्कान
दर्द मुझको दे चुका माँगे बिना संसार
माँगने पर भी मुझे जो दे न पाया प्यार

प्यार-सा बेसुध नहीं स्वीकार करता हूँ
क्योंकि मैं तो मृत्यु से व्यापार करता हूँ

गा रहा हूँ दर्द अपना, कण्ठ में भर गीत
चाहता हूँ गीत के संग उम्र जाए बीत
राह पर मुझको मिले हैं फूल में छिप शूल
स्वप्न भी सोना दिखाकर दे गए हैं धूल

स्वप्न-सा दुर्बल नहीं स्वीकार करता हूँ
क्योंकि जीने के लिए हर बार मरता हूँ

एक क्या अनगिन सितारे हैं गगन के साथ
किन्तु पाए भर न मेरे कभी ख़ाली हाथ
पल रहा हूँ मैं किसी के प्राण में चुपचाप
बह रहा हूँ आंसुओं के साथ बन सन्ताप

अश्रु-सा कोमल नहीं स्वीकार करता हूँ
टूटकर मैं वक्ष पर अंगार धरता हूँ

चाहता हूँ मैं करूँ मुझको मिला जो काम
छोड़कर चिन्ता मिलेगा क्या मुझे परिणाम
मैं सुखी होकर कभी भूलूँ न जग का क्लेश
जो दुखों का अन्त कर दे, दूँ वही सन्देश

मैं दुखों की शक्ति को स्वीकार करता हूँ
क्योंकि दुखियों को गले का हार करता हूँ