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देवता हँस रहे हैं / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
देवता हँस रहे हैं
हँसते हैं वे अज्ञात भाषा में
सोचकर मैंने-
प्रवेश किया उस अज्ञात घाटी में
जहाँ से फूट रहा था-
उनकी हँसी का प्रकाश।
भय के घोड़े थे
बड़े-बड़े रंगीन
वहां मेरे लिए
जिन पर सवार हो कर
गुजर जाना था मुझे
चमकती हँसी के पलाशों को छूते
क्या देख रहा हूँ मैं
देवता-
या उत्पन्न करने वाले
रंगीन घोड़े !