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देवाराधन करें-करायें निज-निज / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग मधुवंती-ताल धुमाली)

 
देवाराधन करें-करायें निज-निज मत-श्रद्धा-‌अनुसार।
वेदाध्ययन, यज्ञ, गायत्री-पुरश्चरण कल्याणाधार॥
सप्तशती, रुद्राभिषेक, जप-मृत्युंजय, नारायण-वर्म।
पाठ गजेन्द्रमोक्ष, पावन सप्ताह भागवत पाठ सुकर्म॥
वाल्मीकि, मानस-रामायण-पारायण श्रद्धासे युक्त।
भगवन्नाम-‌अखण्ड-कीर्तन-जप विश्वास-भाव-संयुक्त॥
ग्वाँर-बिनौला, भूसा-चारा भूखी गायोंको दें दान।
श्रद्धायुक्त हृदयसे शुचितम योग्य ब्राह्माणोंको गोदान॥
अन्न-कष्ट-पीडित मानवको अन्न-दान शुचि सह-सत्कार।
दुःख दूर हो दुखीजनोंके करें नित्य ऐसा व्यवहार॥
असहाय विधवा बहनोंको, छात्रोंको दें गुप्त सहाय।
कूएँ बनवायें, जल-कष्ट -निवारणके सब करें उपाय॥
जैन, बौद्ध, सिख, करें सभी निज-निज धर्मानुकूल आचार।
ईसा-भक्त अन्यधर्मी सब करें करुण प्रार्थना-पुकार॥
करें-करायें पुण्य कार्य ये जगह-जगह सब बारंबार।
सन्मति-शान्ति-सुखोदयके हैं ये मंगल-साधन अविकार॥