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देवासुर / अज्ञेय

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(1)
ऋषियों की अस्थियों से भी
सुरगण केवल अस्त्र ही बना पाये
क्यों नहीं उनसे खाद बनी
जो अकाल अनावृष्टि में
रसा वसुन्धरा को फलवती बनाये-
लोक-जन के काम आये?

(2)
असुर सदैव बली रहेंगे
क्यों कि सुर तो केवल
किसी के भरोसे हैं-
ऋत पर ही सही-निर्भर हैं।
और असुर-दुरभि सन्धि में लगे सही-
निरन्तर कर्म-तत्पर हैं।

(3)
जिस ठंडे सीलन भरे घेरे में
लोग ठिठुरते-मरते हैं
वह मन्दिर की गीली छाँह का है
देवता के घर के कारण
देवता की धूप उन्हें कभी नहीं मिलती।