देवी सरस्वती वन्दना / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’
हँस वाहिनी कमल आसिनी
हस्त वीणा स्वेत वसना
अंग के धरती करै छौं, नमन तोरोॅ शारदे माँ!
भुदित मन से ‘बोली’ दै माँ अंग केॅ पहचान देल्हौॅ
दश-सतक के मृतक भाषा केॅ चिन्है के ज्ञान देल्हौॅ
तोहिं राहुल केॅ चिन्हैल्हौ ‘अंगिका भाषा’ सुहासिनी!
राम आश्रय केॅ बतैल्हौ द्वार खोलेॅ ज्ञान वासिनी!
मातृभाषा सें अपरिचित छै अभी तक विज्ञ कत्तेॅ
ज्ञान के लोचन दहू माँ! शीघ्र लौटेॅ पूत जत्तेॅ
सगुण मन सें द्वार खोल्हौ अंग के छठमीं सदी के
अंगिका प्राच्या बनेॅ माँ! ज्ञान-धारा-युत नदी के
विश्व गुरू फिन सें बनेॅ माँ! अंग के तन जाय सीना
एक बेरियाँ तों बजैभौॅ-अंग धरती पर जों वीणा
तान सुनथैं चहक उठतै, खण्डहर विक्रमशिला के
शान देखथैं शृंगी-शान्ता-कर्ण हंसतै खिलखिलाय केॅ
फिन यही माँटी में मैय्या! बिहुला केरोॅ ‘सतीत्व’ सजतै
‘बालाचन्दन’ औ विशाखा के अलग अस्तीत्व बनतै
फिन अतीशें एकदाफी, ज्ञान के सौगात देतै
सरह पादें-सवरपां फिन मातृभाषा केॅ अघैतै
तोरहै हेरला सें सरस्वती! अंगिका जल्दी पनपतै
तिमिर काटी, ज्योति पाटी, नवल सुर में गुणगुनैतै
गोपी चन संगीत सें फिन अंग धरती चहचहैतै
ऊगना खोजै के खातिर, कंठ-कोकिल छटपटैतै
शरद वनफूल्हौं जनम लै, अंग करजोॅ के सधैतै
दिनकर्हौ के लेखनी माँ! अंग भाषा केॅ उगलतै
अंध नासिनी, हृदय लोचिनी
अगुण मोचिनी, बुद्धि रसना
अंग के बासी करै छौं, नमन-सत शारदे माँ!