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देवी स्तुति (राग रामकली)/ तुलसीदास
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					देवी  स्तुति
(राग रामकली) 
(16)
जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि,
 
भुक्ति-मुक्ति-दायिनी, भय-हरणि कालिका। 
मंगल-मुद-सिद्वि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि,
 
ताप-तिमिर-तरूण-तरणि-किरणमालिका।।
 
वर्म, चर्म कर कृपाण, शूल-शेल -धनुषबाण,
 
धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका। 
पूतना-पिंशाच-प्रेत-डाकिनि-शाकिनि-समेत,
 
भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका।।
 
जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी,
 
समस्त-लोक-स्वामिनी, हिमशैल-बालिका। 
रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अजल नेम,
 
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका।।
 
	
	

