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देव, अवतरण करो धरा-मन में क्षण, अनुक्षण / सुमित्रानंदन पंत

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देव, अवतरण करो धरा-मन में क्षण, अनुक्षण,
नव भारत के नवजीवन बन, नव मानवपन!
जाति ऐक्य के ध्रुव प्रतीक, जग वंद्य महात्मन्,
हिंदू मुस्लिम बढ़ें तुम्हारे युगल चरण बन!

भावी कहती कानों में भर गोपन मर्मर,--
हिंदू मुस्लिम नहीं रहेंगे भारत के नर!
मानव होंगे वे, नव मानवता से मंडित,
मध्य युगों की कारा से भू पर चल विस्तृत!

जाति द्वेष से मुक्त, मनुजता के प्रति जीवित,
विकसित होंगे वे, उच्चादर्शों से प्रेरित!
भू जीवन निर्माण करेंगे, शिक्षित जन मत,
बापू में हो युक्त, युक्त हो जग से युगपत्!

नव युग के चेतना ज्वार में कर अवगाहन
नव मन, नव जीवन-सौंदर्य करेंगे धारण!