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देव-प्रवोधन / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
ऊँ सुनु 2 तू सोखा भाई! जनि खोटी करो कमाई।
करु जीव घात मनहाई, श्रीरामानन्द दोहाई॥1॥
सुनु वीर साँवरे कारू, जनि आयन काम बिगारू।
करु मध्य मांस मनहाई, श्री॥2॥
सुनु रे तू गोरया भाई!, जो चाहो आपु भलाई।
करू. ॥3॥
सुनुरे भाई पँच पिरिया। तोहि मातु पिताकी किरिया।
करु.॥4॥
सुन रे परमेश्वरी रानी! तू कहाँ फिरै बौरानी।
करु.॥5॥
दुरुख मत छोड़ो दुर्गा! तजु भेडा भेँसा मुर्गा।
करु.॥6॥