देव जीवन से अधिक कुछ नहीं देते,
तो जो हमें आह्लादित करता है,
अनन्त परन्तु अपुष्पित
जो उठा देता है विस्मयकारी ऊंचाइयों तक,
चलो उसे चाहना छोड़ दें ।
स्वीकार करना -- बस केवल यही हो हमारा ज्ञान,
और जब तक है हमारी धमनियों में रक्त का प्रवाह,
जब तक प्यार कुम्हला नहीं जाता,
चलो यूँ ही चलते रहें
कांच के टुकड़ों की तरह : रोशनी में पारदर्शी,
टपकती उदास बारिश से टप-टपाते,
धूप में गुनगुने होते,
और करते थोडा-थोडा प्रतिबिम्बित ।