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देव / अंजना टंडन

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बिना विश्वास के
प्रार्थना का रूदन
स्वयं के कानों तक भी नहीं पहुँचता,

देव क्यूँ कर आते

वे गजराज के लिए आए
द्रौपदी के लिए भी,

श्रद्धा का कमलदल
समर्पण के ताप से
देव की नाभि के सरोवर में खिलता है,

देव से जुड़ पाना ही देव बन जाना है...।