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देशक साठिम साल / शम्भुनाथ मिश्र

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देश भेल स्वाधीन, बीति रहलै अछि साठिम साल
देश ककर थिक के सोचत, से भारत देश विशाल

करय कोन नहि कर्म
किन्तु नहि अनुभव करइछ ग्लानि
मर्यादा रक्षार्थ आइ
पुरुषोत्तम रहला कानि

सत्य हरिश्चन्द्रेक भूमिपर झुट्ठा बजबय गाल
भरत भूमिपर आइ भरत सन्ताने होथि हलाल

जकर घोटाला जते पैघसे
बनय तते उत्फाल
सब अपने तिकड़ममे लागल
करइछ गोटी लाल

कते लूझि भरि सकब तिजोड़ी ताही लेल बेहाल
लूटि पाटि अपहरण कराबय से अछि भेल नेहाल

आब न दूसि सकत मुँह सूपक
सब चालनि बनि गेल
भेल बिकाउ बनल जन प्रतिनिधि
करइछ धरम धकेल

नहि विश्वास रहल ककरहु पर, सब लै सब क्यौ काल
कहबालय थिक लोकतन्त्र आ अछि लोकेक अकाल

हृदयक नहि होयत परिवर्तन
घटि नहि सकत बबाल
लुंज पुंज अछि सकल व्यवस्था
बदलक मुख्य सबाल

जे नहि झपटब जानय अनकर, जीवन तकर जपाल
आइ रक्षके भक्षक बनि कय उड़बय रंग-गुलाल

सकल राष्ट्र धृतराष्ट्रक चश्मा
पहिरि बनल अछि मौन
शासन दुःशासनक हाथमे
सज्जन दुबकल कोन

आजुक अर्जुन बनि दुर्योधन बजा रहल अछि गाल
बुझा रहल अछि आबि गेल जनु सरिपहुँ नाशक काल