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देशद्रोही ले दुर्दशा / गिरिवरदास वैष्णव

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तिनकर कुल मा पैदा होके
अंगरेज मन के गयेन शरन ।

उन्हीं ला भाई बापू बनाके
ऊखरे सेवा हमीं करन ।

ऊंकर जूठा काटा खाके
जी हुजूर हम बने रथन

ऊंकरे मुंह ला जोहत जाके
हम बगला में खड़े रथन।

अपने देश भाई मन के
चूंदी ला उनला परा दिएन ।

खुरसी पाये के लालच मा
गरुवा बैला कटवायेन ।

मंदिर घलों के भेद बताके
बोहू मा टिक्कस लगवायेन ।

चीज स्वदेशी नइ लेके, भारत
ला कगला करवायेन ।

माल विदेशी अउ विलायती
लेके नकटा कहलायेन ।

हमर देश के माल खजाना
एको बांचे नइ पाइस ।

लेग लेग के सकल चीज ला
विलायत मा भरवाइस ।

अंगरेजवा मन हमला ठगके
हमर देश मा राज करय ।

हम कइसे नालायक बेटा
ऊंकरे आदर मान करय ॥