देशप्रेम / चन्द्र गुरुङ
मेरे आसमान से
चांद और सूरज तोड़कर
कपड़े के एक टुकड़े में जड़ दिया
मेरे ही ख़ून से पुताई किया
मेरे ही पसीने से धोया
और कहा
तुम्हारा राष्ट्रीय ध्वज
पहाड़ों और घाटियों में चढ़ते-उतरते
मेरी आत्मीय सिसकारियों ने
उस गीत में धुन को रचा
उस गीत में प्राण डाले
मिलाई लय और मुझे समझाया
तुम्हारा राष्ट्रीय गान
मेरे दिल का एक टुकड़ा डाला
मेरी धड़कन से प्राण भरे
मेरी सांसों की सुगन्ध मिलाई
और कहा
तुम्हारा राष्ट्रीय फूल
मेरी आस्था
मेरे विश्वास की पोटली बनाकर
एक मूर्ति के आगे रखते हुए कहा
तुम्हारा राष्ट्रीय देवता
तुम्हारा राष्ट्रीय धर्म
मेरे घर-आँगन में
सपने बांटते फ़िर रहे
आदमियों का झुण्ड दिखाते हुए कहा
तुम्हारी सरकार
मेरी सारी उम्मीदों और
अपेक्षाओं को लिपिबद्ध करके
कहा
तुम्हारा संविधान
और कहा
दिल की दीवार पर एक मानचित्र में
भूगोल के एक भाग को दिखाते हुए
यह है तुम्हारा देश
मैं सीमा पर खड़ा
भूखे पेट
नंगे शरीर
खाली हाथ-पैर
चूम रहा हूँ एक मुट्ठी मिट्टी।