भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देशभक्ति / मोहनलाल अरमान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिला दे जाम ज़रा मुल्क के मयख़ाने की,
फिर ज़रूरत न रहे साक़िया पैमाने की।

मसरूर आंखों में वो रंग गुलाबी आए,
मस्त बहके जो अदा देख ले मस्ताने की।

निसार मुल्क की खि़दमत में जां अगर हो मेरी,
फिर तमन्ना न मुझे दैरे हरम जाने की।

जुल्मे ज़ालिम से परेशान, मुज़्तरिब थे हम,
चर्ख़ तुझको क्या पड़ी है मेरे बहलाने की।

क़फ़स में करके मुझे यों न धमकियां दे तू,
याद कर ले मेरे नालों में असर आने की।

सितम की तेगे़ जफ़ा सुर्ख़ फ़ाम है अरमां,
हवस है दिल की शहादत पे ख़ू बहाने की।


रचनाकाल: सन 1931