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देशभक्ती के नारे गढ़े जा रहे / डी. एम. मिश्र

देशभक्ती के नारे गढ़े जा रहे
सरहदों पे सिपाही कटे जा रहे

कल का गद्दार सूबे का मंत्री है अब
लेाग उसकी भी जय-जय किये जा रहे

अब तो दिल्ली में मुश्किल से दर्ज़ी मिलें
सिर्फ पीएम के कपड़े सिले जा रहे

देश में जैसे सन्तों की बाढ़ आ गयी
बन के बाबा वो सबको ठगे जा रहे

हम भी डीएम हैं लेकिन फटेहाल हैं
कितने डीएम तिजोरी भरे जा रहे

जब किसानों की है फिक्र सरकार को
क्यों वो सल्फ़ास खाके मरे जा रहे

हम तो अपने वतन ही में बेगाने हैं
हम तो अपने ही घर में छले जा रहे

कितने अशफ़ाक़, बिस्मिल को तुम जानते
गाल नाहक बजाये चले जा रहे