भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देशोॅॅ लेॅ सोचोॅ / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
कुच्छू तेॅ देशोॅ लेॅ सोचोॅॅ
पैहिलै सेॅ तेॅ छेलौं छोॅ टा
नयका साल में फेनू एक टा
थाह कहीं पर छौं की, नै छौं
ई साल बेटी, ऊ साल बेटा
भरले रहै छौं हरदम खोचोॅ
कुच्छू तेॅ देशोॅ लेॅ सोचोॅ ।
साले-साल ई छट्टी भौजी
बीकी जेथौं चट्टी भौजी
केना केकरा पालवौ-पोसबौ
खुलथौं आँख के पट्टी भौजी
बिलबिल करथों जेहनोॅ मूसोॅ
कुच्छू तेॅ देशोॅ लेॅ सोचोॅ ।
हिन्नें रोकोॅॅ देश बढ़ावोॅ
आॅपरेशन के लैन लगावोॅ
पुत्रा पावै के छोड़ोॅ किंछा
ढेंगरा-ढंेगरी घौंज-मौज-बोचोॅ
कुच्छू तेॅ देशोॅ लेॅ सोचोॅॅ ।