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देश-दीपक / महेन्द्र भटनागर

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देश दीपक
स्नेह आहुतियाँ,
दमन की आँधियाँ
पर, लौ लहर कर व्योम में
जलती रहे, जलती रहे !

शीश बलिवेदी सतत चढ़ते रहें,
परतन्त्रता-युग-तम बदल जाये
प्रकाशित मुक्ति के सुन्दर क्षणों में !

जीत के स्वर, शांति के स्वर,
और नव-निर्माण के स्वर
साधना चलती रहे, चलती रहे !
गुंजित गगन, मुखरित जगत हो,
इनक़लाबी दृढ़ दहाड़ें
चिन्ह अन्यायी हुकूमत का मिटा दें,
त्याग का, बलिदान का,

नव-प्रेरणा का ज्वार ऐसा
जन-समुन्दर में बहेगा जब
तभी यह क्रांति का इतिहास
निर्मित हो सकेगा !
तोड़ पाएगा तभी
परतंत्रता की लौह-कड़ियों को
बँधा, जकड़ा हुआ यह राष्ट्र !

बुझ गया यदि देश-दीपक,
तो अँधेरा क्या
मरण-अभिशाप होगा !
लूट का आरम्भ होगा !
घोर शोषण की कहानी का
प्रथम वह पृष्ठ होगा !
इसलिए —
बलिदान की है माँग,
आओ नौजवानो !
आज माता माँगती है
प्राण का उत्सर्ग !
धरती को बनाओ स्वर्ग !
 1945