भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देश और देश में रहते हुए / नासिर अहमद सिकंदर
Kavita Kosh से
भ्रष्टाचार बढ़ रहे देश में
घोटाले तेजी से
बहुत तेजी से
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभुत्व
विदेशी कर्ज
प्राइवेटाइजेशन
किसानों की आत्महत्याएं
प्रलोभन के साथ
मजदूरों की छटनी
घर घर में टी.वी.
टी. वी. में चैनल
छद्म राष्ट्रवाद
धार्मिकता
दंगे
नैतिकता के बजाये अनैतिकता
न्याय के बजाये अन्याय
अहिंसा के बजाये हिंसा
तकनीकी में गुलामी
और गुलामी में
आजादी की वर्षगांठ मनाता
देश बढ़ रहा-
देश में रहते हुए
मेरा ब्लडप्रशर
चश्में का नम्बर
जनमानस में असंतोष !