भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देश का दुर्भाग्य / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा बाँधे बादल
हुक्का गुड़गुड़ाते हैं,
समय को
चीरे डालती है
बिजली

आदमी
अब भी
हठयोग करता है,
शरीर को
उलटाए,
पाँव
सिर पर अपने उगाए,
मुट्ठियाँ
जमीन पर शवासन में लिटाए
मौत की भीड़
मेला देखती है स्वर्ग का
चक्कर काटता है
देश का दुर्भाग्य
वायुयान में

रचनाकाल: १२-०८-१९७१