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देश के हालात / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
तुम देश के हालात से वाकिफ तो होगे
हर तरफ एक शोर-सा बरपा हुआ है
कुछ लोग अपनी टोपियों में आँख भर कर
चाहते हैं कि नज़ारा ही बदल जाए अभी
कुछ कान में भर कर घंटियों की सदा
सोचते हैं कोई आ के बचाएगा उन्हें
कुछ हाथ में ले कर बस एक किताब
बोलते हैं कि ‘सवा लाख’ के बराबर हूँ
कुछ शक्ल अपनी सलीब की सूरत बना कर
कहते हैं कि उनके जैसा यहाँ कोई नहीं
हर तरफ एक शोर-सा बरपा हुआ है
तुम देश के हालात से वाकिफ तो होगे