देश मजे में / शिवशंकर मिश्र
देश मजे में चल रहा,
मस्ती में सरकार,
बाबू-अफसर सारे बम-बम,
वेतन कई हजार;
वेतन कई हजार,
कई ऊपर से आते,
चपरासी को
बड़े-बड़े आदाब बजाते;
बड़े-बड़े आदाब बजाते,
चक्कर काटें, घूमें,
पाँवों पर थैलियाँ चढ़ाएँ,
तलवे चाटें, चूमें;
तलवे चाटें, चूमें,
चलती बल खाती हर फाइल,
आँखों-आँखों लक्ष्य साधती,
होठों-होठों स्माइल;
होठों-होठों स्माइल,
चढ़ता पानी पेटों-पेटों,
ऊँचे जाता है बापों तक
चलकर बेटों-बेटों;
चलकर बेटों-बेटों,
लम्बा उन का मायाजाल,
लाल कलम से करते काला,
काली से सब लाल;
काली से सब लाल,
करें रेखाएँ छोटी,
लाठी उन की, भैंस उन्हीं की,
अपनी मुश्किल रोटी;
अपनी मुश्किल रोटी,
चाहे जिस की हो सरकार,
मस्त बाढ़-सूखे में वे हैं,
हम बेबस लाचार;
हम बेबस, लाचार,
नहीं अपना है कोई लाग,
जाने कब जागेगा भैया,
मिहनत कश का भाग!