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देश हमरोॅ छिकै तेॅ रहतै के / कैलाश झा ‘किंकर’

देश हमरोॅ छिकै तेॅ रहतै के।
हम न कहबै स्वदेश कहतै के।।

बाढ़ सूखा कमाल कैने छै,
कष्ट हमरोॅ छिकै तेॅ सहतै के।

पार अरबोॅ केॅ गेलै जनसंख्या,
हम न रुकबै कभी तेॅ रुकतै के।

आलसी लोग आब सौयै छै,
हम न करबै तेॅ काम करतै के।

घर न फोडोॅ हमर पड़ोसी सब,
भाय हमरोॅ छिकै तेॅ लड़तै के।