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देहली-आँगन-कुआँ बुढ़ाये / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
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कुछ कहने-सुनने को
साधो, नहीं रहा अब
घर पुरखों का -
देहली-आँगन-कुआँ बुढ़ाये
विश्वहाट के –
कोट-लाट के फैले साये
कौन बताये
पूजाघर का शिखर ढहा कब
ऑंखें-मूँदे सूरज
पिछवाड़े जा बैठा
चाँद बापुरा
घर से बिना बात ही ऐंठा
आड़े आया है
पड़ोस के घर का मज़हब
पंखनुची है सोनचिरइया
बैठी छत पर
पड़े एक कोने में
कुचले ढाई आखर
याद नहीं
था दादी ने इतिहास कहा कब