देहात / कार्लोस ओकेन्दो दे आमात / अनिल जनविजय
तुम्हारी आवाज़ से बनता है दृश्य
तुम्हारी उँगलियों के पोरों में सो रहे हैं बादल
तुम्हारी आँखों से लटक रहे हैं
ख़ुशी के रंग-बिरंगे फ़ीते
सुबह के समय
तुम्हारे पहरावे हैं
पेड़ों की चमकती हुई पत्तियाँ
मैं दूर जानेवाली एक रेलगाड़ी में
बैठा हूँ उदास
देहात का चेहरा हो गया है अब
शहर की तरफ़ ।
मूल स्पानी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल स्पानी में पढ़िए
Carlos Oquendo de Amat
CAMPO
El paisaje salía de tu voz
y las nubes dormían en la yema de tus dedos
De tus ojos cintas de alegría colgaron
la mañana
Tus vestidos
encendieron las hojas de los árboles
En el tren lejano iba sentada
la nostalgia
Y el campo volteaba la cara
a la ciudad.