भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देह करी लाचार / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
कोई ना करेगा एतबार
जुलम इतने करि डारे ।
सूरज पै चादर ढक दीनी
अँधियारे में मन की कीनी
देह करी लाचार
जुलम इतने करि डारे ।
जन के प्रान, थकन के मारे,
भय से काँप रहे बेचारे
जैसे पात-बयार
जुलम इतने करि डारे ।