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देह यह बन जाए केवल पाँव / ठाकुरप्रसाद सिंह

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देह यह बन जाए केवल पाँव

केवल पाँव

अब न रोकेंगे तुम्हें घर-गाँव

घन लखराँव


पाँव ही बन जाएँ

तेरी छाँव


ये अधूरे गीत

टूटे छन्द

जूठे भाव

इन्हें लेकर खड़ें कैसे रहें

बीच दुराव