भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देह से भी परे एक विश्वास है / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
देह से भी परे एक विश्वास है
प्यार जैसे अमरता का अहसास है
कामनापूर्ति भी है चरम तृप्ति भी
प्यार भी प्राण की अनबुझी प्यास है
कंटकों में भी दे सुख की अनुभूतियाँ
प्यार दो आत्माओं का मधुमास है
स्रोत है फूटकर सूखता जो नहीं
प्यार आवेग है एक उल्लास है
ज़िद पे आए तो यह विश्व को जीत ले
प्यार तो दास के दास का दास है